Thursday, April 2, 2009

क्यों चले गए आप हमे छोड़कर||

|| ऐसे थे मेरे दादाजी ||

सीधी साधी बातें थी ,बातों में था इक भोलापन 
उनके मुख से कभी किसीने नही सुना कोई कटुवचन| 
दुबले पतले से थे वो और चेहरे पे था एक कडकपन सत्ततर की उम्र थी लेकिन मन में बसा था बचपन||

 ऐसे गुस्सा होते थे वो जैसे हो कोई ज्वाला सा भड़का, 
दूजे ही पल ऐसे हंस देते जैसे कोई शीत लहर का झोंका| 
धुप में भी बाहर चल पड़ते 
जो कभी उनको मिल जाता मोका
 सिर्फ़ खुदकी फ़िक्र न थी उनको ,
थी पुरे समाज की चिंता||

 छुप-छुपकर वो मिठाइयां लाते 
हमारे बहाने ख़ुद भी कुल्फी खाते ,
 पढ़ते-पढ़ते ही वो सो जाते, 
दादी माँ को खूब सताते||

 सुनाते थे किस्से अपने बचपन के,
 शरारतों की अपनी कहानियाँ भी| 
अनजानों से भी ऐसे मिलते - जैसे हो वो अपना कोई||

 ज़माने के साथ चलते थे वो, 
हर चीज़ सिखने की थी चाह भी |
 नए यंत्रों को अपनाया था उन्होंने- 
कहते थे सीखूंगा कंप्यूटर भी||

 ख़बरों का था शौख उन्हें, 
किताबों की भी रूचि थी| 
जब खेला करते थे ludo तब- 
करते थे cheating भी|
 सिर्फ़ दादा जी नही थे वो मेरे 
थे इस घर की रौनक वही||

 रिश्ते तो और भी है मिले मुझको
 पर- वो दुलार कहाँ से पाऊँगी |
 कौन होगा उदास मेरे रूठ जाने पर 
और किससे मैं अपनी बात मनवाऊँगी ||

 सीखी है आपसे दृद निश्चयता मैंने,
 सरलता और हार कभी ना मानना |
 आशीर्वाद आपका संग रहे हमारे 
अबतो बस है यही कामना||

 हँसी,मजाक या अनजाने में 
कभी यदि दिल था दुखाया मैंने आपका - 
तो हाथ जोड़ मन वचन काया से 
करती हूँ मैं छमा याचना || 
~@प्रेरणा@~