|| ऐसे थे मेरे दादाजी ||
सीधी साधी बातें थी ,बातों में था इक भोलापन
उनके मुख से कभी किसीने नही सुना कोई कटुवचन|
दुबले पतले से थे वो और चेहरे पे था एक कडकपन सत्ततर की उम्र थी लेकिन मन में बसा था बचपन||
ऐसे गुस्सा होते थे वो जैसे हो कोई ज्वाला सा भड़का,
दूजे ही पल ऐसे हंस देते जैसे कोई शीत लहर का झोंका|
धुप में भी बाहर चल पड़ते
जो कभी उनको मिल जाता मोका
सिर्फ़ खुदकी फ़िक्र न थी उनको ,
थी पुरे समाज की चिंता||
छुप-छुपकर वो मिठाइयां लाते
हमारे बहाने ख़ुद भी कुल्फी खाते ,
पढ़ते-पढ़ते ही वो सो जाते,
दादी माँ को खूब सताते||
सुनाते थे किस्से अपने बचपन के,
शरारतों की अपनी कहानियाँ भी|
अनजानों से भी ऐसे मिलते - जैसे हो वो अपना कोई||
ज़माने के साथ चलते थे वो,
हर चीज़ सिखने की थी चाह भी |
नए यंत्रों को अपनाया था उन्होंने-
कहते थे सीखूंगा कंप्यूटर भी||
ख़बरों का था शौख उन्हें,
किताबों की भी रूचि थी|
जब खेला करते थे ludo तब-
करते थे cheating भी|
सिर्फ़ दादा जी नही थे वो मेरे
थे इस घर की रौनक वही||
रिश्ते तो और भी है मिले मुझको
पर- वो दुलार कहाँ से पाऊँगी |
कौन होगा उदास मेरे रूठ जाने पर
और किससे मैं अपनी बात मनवाऊँगी ||
सीखी है आपसे दृद निश्चयता मैंने,
सरलता और हार कभी ना मानना |
आशीर्वाद आपका संग रहे हमारे
अबतो बस है यही कामना||
हँसी,मजाक या अनजाने में
कभी यदि दिल था दुखाया मैंने आपका -
तो हाथ जोड़ मन वचन काया से
करती हूँ मैं छमा याचना ||
~@प्रेरणा@~
सीधी साधी बातें थी ,बातों में था इक भोलापन
उनके मुख से कभी किसीने नही सुना कोई कटुवचन|
दुबले पतले से थे वो और चेहरे पे था एक कडकपन सत्ततर की उम्र थी लेकिन मन में बसा था बचपन||
ऐसे गुस्सा होते थे वो जैसे हो कोई ज्वाला सा भड़का,
दूजे ही पल ऐसे हंस देते जैसे कोई शीत लहर का झोंका|
धुप में भी बाहर चल पड़ते
जो कभी उनको मिल जाता मोका
सिर्फ़ खुदकी फ़िक्र न थी उनको ,
थी पुरे समाज की चिंता||
छुप-छुपकर वो मिठाइयां लाते
हमारे बहाने ख़ुद भी कुल्फी खाते ,
पढ़ते-पढ़ते ही वो सो जाते,
दादी माँ को खूब सताते||
सुनाते थे किस्से अपने बचपन के,
शरारतों की अपनी कहानियाँ भी|
अनजानों से भी ऐसे मिलते - जैसे हो वो अपना कोई||
ज़माने के साथ चलते थे वो,
हर चीज़ सिखने की थी चाह भी |
नए यंत्रों को अपनाया था उन्होंने-
कहते थे सीखूंगा कंप्यूटर भी||
ख़बरों का था शौख उन्हें,
किताबों की भी रूचि थी|
जब खेला करते थे ludo तब-
करते थे cheating भी|
सिर्फ़ दादा जी नही थे वो मेरे
थे इस घर की रौनक वही||
रिश्ते तो और भी है मिले मुझको
पर- वो दुलार कहाँ से पाऊँगी |
कौन होगा उदास मेरे रूठ जाने पर
और किससे मैं अपनी बात मनवाऊँगी ||
सीखी है आपसे दृद निश्चयता मैंने,
सरलता और हार कभी ना मानना |
आशीर्वाद आपका संग रहे हमारे
अबतो बस है यही कामना||
हँसी,मजाक या अनजाने में
कभी यदि दिल था दुखाया मैंने आपका -
तो हाथ जोड़ मन वचन काया से
करती हूँ मैं छमा याचना ||
~@प्रेरणा@~